जयदेव ओझा, प्रोफेसर कृष्ण प्रताप सिंह
वैदिक ग्रंथों में इसे ‘अमृतसदृश’ कहा गया है और आयुर्वेद में इसके औषधीय, पोषक तथा रोग-निवारक गुणों का वर्णन मिलता है । वर्तमान युग में, जब वैश्विक वैज्ञानिक समुदाय जैविक कृषि, औषधीय उत्पादों, तथा पर्यावरण-मित्र तकनीकों की ओर लौट रहा है, पंचगव्य, जो गाय के पाँच उत्पादों-दूध, दही, घी, गोमूत्र और गोबर का समुच्चय है, भारतीय पारंपरिक चिकित्सा, कृषि, पर्यावरण संरक्षण और आध्यात्मिक जीवन का अभिन्न अंग रहा है । पंचगव्य एक “परंपरा से विज्ञान तक” का उदाहरण बन गया है । आधुनिक शोधों ने सिद्ध किया है कि पंचगव्य में एंटीबैक्टीरियल, एंटीऑक्सीडेंट, इम्यूनोमॉड्युलेटरी तथा ग्रोथ प्रमोटिंग गुण पाए जाते हैं । यह शोध-पत्र प्राचीन भारतीय ग्रंथों, वैदिक साहित्य, आयुर्वेदिक संदर्भों तथा आधुनिक वैज्ञानिक प्रयोगों के तुलनात्मक अध्ययन पर आधारित है । इसका उद्देश्य यह सिद्ध करना है कि भारतीय ज्ञान-विज्ञान परंपरा न केवल सांस्कृतिक धरोहर है, बल्कि आधुनिक वैज्ञानिक दृष्टि से भी अत्यंत प्रासंगिक है । यह अध्ययन पंचगव्य के ऐतिहासिक, दार्शनिक, औषधीय, कृषि एवं पर्यावरणीय आयामों का विश्लेषण कर, उसके समग्र वैज्ञानिक मूल्य को रेखांकित करता है ।
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