सुश्री अपूर्वा सिंह, लालिमा सिंह
किसी भी राष्ट्र के विकास में समाज के प्रत्येक व्यक्ति वर्ग, जाति, समुदाय की सहभागिता महत्वपूर्ण मानी जाती हैं। विकास की इस अवधारणा में हम महिलाओं की सहभागिता को नजरअंदाज नहीं कर सकते। इतिहास इसका साक्षी है कि राष्ट्र के विकास में महिलाओं की सहभागिता ने पूरे विश्व के सामने एक मानक का उदाहरण प्रस्तुत किया है। लकिन विश्व के गिने-चुने विकसित देशों को छोड़ दे तो बाकी बचे देशों में महिलाओं की भूमिका पुरूषों से भी कम है। आज भी बहुत से देशों में महिलाएं पुरातनवादी व्यवस्था में जा रहीं है। महिलाओं को विकसित देशों की श्रेणी में लाने के लिए एवं पुरातन व्यवस्था से मुक्ति दिलाने के लिए यह आवश्यक था कि उन्हें कुछ महत्वपूर्ण अधिकार प्रदान की जाए। महिलाओं के लिए इस प्रयास की प्रक्रिया को ही ’’महिला सशक्तिकरण‘ कहते हैं। महिला सशक्तिकरण का तात्पर्य महिलाओं को पुरूषों के बराबर सामाजिक, आर्थिक, रानैतिक, वैधानिक एवं मानसिक क्षेत्रों में एसके परिवार, समुदाय, समाज एवं राष्ट्र की सांस्कृतिक पृष्ठभूमि में निर्णय लेने की स्वतन्त्रता से है। महिला सशक्तिकरण को सुनिश्चित करने के लिए संविंधान में भी कई प्रावधान हैं। यह लेख संविधान के प्रावधान एवं मनरेगा कानून के विश्लेषण को दर्शाने का प्रयास है।
Pages: 104-106 | 464 Views 128 Downloads