पंचम खण्डेलवाल
कला सौन्दर्य के सम्बन्ध में विश्व कवि रवीन्द्र नाथ टैगोर ने कहा है - ‘‘जो सत् है, जो सुन्दर है, वही कला है। सृष्टि में चारों ओर एक चिर सौन्दर्य परिलक्षित हो रहा है, एक चिरन्तन सत्य का आभास मिल रहा है, इसी का व्यक्तिकरण, इसी को कल्पना के उन्मुक्त पंखो द्वारा चारों और प्रकट कर देना ही कला है’’।
कला स्वयं सौन्दर्य की प्रेरणा से प्रकट होती है। कलाकार के भीतर अस्फुट रूप से विद्यमान सौन्दर्यभास ही मूर्त होकर कलागत सौन्दर्य कहलाता है।
अर्थात सभी कलाओं का मूल सौन्दर्य, भाव और रस है। कलाकार के अनुसार माध्यम बदल जाता है। संगीत स्वर के माध्यम से सौन्दर्य, रस और भावाभिव्यक्ति करता है। कविता शब्दों के माध्यम से यह अभिव्यक्ति करती है तो चित्रकार इसी अभिव्यक्ति के लिए रंग-रेखाओं को माध्यम बनाता है।
संगीत और कविता श्रव्य और चित्र दृश्य कला है। श्रव्य को दृश्य करने का प्रयास रागमाला चित्रों में हुआ है। जहाँ शब्द रूक जाते हैं चित्र कि भाषा वहीं से प्रारम्भ हो जाती है। दोनों का उद्देश्य - अभिव्यक्ति रहा है।
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