डॉ. रंजु कुमारी
भारत के स्वतंत्रता आंदोलन ने समाज के प्रत्येक वर्ग को प्रभावित किया। विशेषकर महिलाओं ने स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भूमिका निभाई, जिससे समाज में महिला सशक्तिकरण की चेतना का उदय हुआ। किंतु आजादी से पहले बिहार ही नहीं बल्कि पूरे भारत में महिला शिक्षा की स्थिति अत्यंत दयनीय थी। सामाजिक बंधन, पितृसत्तात्मक परंपराएँ और रूढ़िवादी सोच महिलाओं की शिक्षा के मार्ग में बाधा बनी हुई थीं। स्वतंत्रता के पश्चात भारत सरकार और बिहार सरकार ने महिला शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए अनेक कदम उठाए, जिसके परिणामस्वरूप धीरे-धीरे महिला शिक्षा में सुधार हुआ। आज बिहार में महिला शिक्षा का परिदृश्य स्वतंत्रता-पूर्व की तुलना में बहुत बदल चुका है, यद्यपि अब भी अनेक चुनौतियाँ शेष हैं।
1950 के दशक से बिहार में महिला शिक्षा के लिए विद्यालयों और महाविद्यालयों की स्थापना की गई। संविधान में शिक्षा को मौलिक अधिकार घोषित किए जाने से बालिकाओं के लिए अवसर बढ़े। केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा "सर्वशिक्षा अभियान", "राष्ट्रीय साक्षरता मिशन" और "बालिका शिक्षा प्रोत्साहन योजना" जैसे कार्यक्रमों ने व्यापक असर डाला। विशेषकर 1990 के बाद से बिहार में महिला साक्षरता दर में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की गई। 1951 में बिहार की महिला साक्षरता दर मात्र 4.22% थी, जो 2011 की जनगणना तक बढ़कर लगभग 51.5% तक पहुँच गई।
महिला शिक्षा के विकास में स्वयं सहायता समूहों, गैर सरकारी संगठनों और पंचायती राज संस्थाओं ने भी सहयोग किया। ग्रामीण क्षेत्रों में "मुख्यमंत्री बालिका साइकिल योजना" जैसी पहल ने लड़कियों की विद्यालय तक पहुँच को आसान बनाया। उच्च शिक्षा में भी महिलाओं की भागीदारी लगातार बढ़ी है, जिससे वे चिकित्सा, इंजीनियरिंग, प्रशासन और अनुसंधान जैसे क्षेत्रों में अग्रसर हुई हैं।
हालाँकि चुनौतियाँ आज भी मौजूद हैं- गरीबी, बाल विवाह, सामाजिक असमानता और बुनियादी ढाँचे की कमी अब भी महिला शिक्षा की गति को धीमा करते हैं। फिर भी, आजादी के पश्चात बिहार में महिला शिक्षा का विकास एक सकारात्मक दिशा में आगे बढ़ा है। यह स्पष्ट है कि निरंतर सरकारी प्रयास, सामाजिक जागरूकता और महिलाओं की इच्छाशक्ति ने शिक्षा को उनके जीवन का आधार बनाया है।
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