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International Journal of Arts, Humanities and Social Studies
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Vol. 7, Issue 2, Part D (2025)

भारत की राष्ट्रीय राजनीति में गठबंधन राजनीति का महत्व : एक विश्लेषणात्मक अवलोकन

Author(s):

चन्द्रा सत्या प्रकाश

Abstract:

गठबंधन शब्द लैटिन शब्द कोएलिटियो से लिया गया है जिसका अर्थ है एक साथ बढ़ना । जब कई राजनीतिक दल चुनाव पूर्व सरकार बनाने की इच्छा या चुनाव पश्चात सरकार बनाने के लिए हाथ मिलाते हैं और एक आम सहमति वाले कार्यक्रम के आधार पर राजनीतिक शक्ति का प्रयोग करते हैं, तो हम इस प्रणाली को गठबंधन राजनीति या गठबंधन सरकार कहते हैं । गठबंधन एक सहकारी व्यवस्था को दर्शाता है जिसके तहत अलग-अलग राजनीतिक दल अन्य राजनीतिक दलों के साथ कई उद्देश्यों से प्रभावित होकर गठबंधन करता है । यह एक बहुदलीय सरकार की परिघटना है जहाँ कई अल्पसंख्यक दल सरकार चलाने के उद्देश्य से हाथ मिलाते हैं । गठबंधन तब बनता है जब सदन में कई अलग-अलग समूह अपने व्यापक मतभेदों को भुलाकर एक साझा मंच पर हाथ मिलाकर बहुमत बनाने के लिए सहमत होते हैं । गठबंधन प्रणाली का अंतर्निहित सिद्धांत विशिष्ट हितों के अस्थायी संयोजन के सरल तथ्य पर आधारित है । गठबंधन की राजनीति स्थिर नहीं बल्कि गतिशील मामला है, क्योंकि गठबंधन के घटक और समूह विघटित हो जाते हैं और नए समूह बन जाते हैं । गठबंधन राजनीति का मूल मंत्र समझौता है, तथा इसमें कठोर हठधर्मिता का कोई स्थान नहीं है । गठबंधन समायोजन का उद्देश्य सत्ता पर कब्ज़ा करना है । आधुनिक चुनाव प्रक्रिया में कई राजनीतिक दल समान राजनीतिक विचारधारा, साझा राजनीतिक कार्यक्रम, राजनीतिक महत्वकांक्षा, राजनीतिक अवसरवादिता, राजनीतिक लाभ इत्यादि के आधार पर गठबंधन राजनीति में शामिल होता है । भारत की राष्ट्रीय राजनीति में चुनाव पूर्व और चुनाव पश्चात गठबंधन राजनीति होती रही है । भारत की स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात वर्ष 1967 तक कांग्रेस पार्टी का केंद्र और सभी राज्यों में सरकारें थी । लेकिन 1967 से कई राज्यों में अन्य राजनीतिक दलों ने अपनी सरकारें बनायी । क्षेत्रीय दलों के उभार ने कांग्रेस को कई राज्यों में चुनौती दिया जिसके परिणामस्वरूप पहली बार 1977 में जनता पार्टी के नेतृत्व में केंद्र में गैर-कांग्रेसी सरकार बनी थी । हालाँकि जनता पार्टी के नेतृत्व में केंद्र में बनी सरकार 1980 में गिर गई थी । इस तरह से राष्ट्रीय राजनीति में गठबंधन राजनीति की शुरुआत हुई । ऐसा नहीं है कि इस दौर में कांग्रेस पार्टी राष्ट्रीय राजनीति के परिदृश्य से ग़ायब हो गई । लेकिन इस दौर में कई राज्यों में क्षेत्रीय दलों की मज़बूती से उभार ने राष्ट्रीय राजनीति में गठबंधन सरकार की मजबूरी को बढ़ा दिया । 1989 में राष्ट्रीय मोर्चा के नेतृत्व में केंद्र में गठबंधन की पुन: सरकार बनी । 1989 से 2014 तक, आम चुनावों में किसी भी एक दल को बहुमत नहीं मिला । 16वीं और 17वीं लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने अकेले बहुमत के आँकड़ों को पार किया था । भाजपा के इस उपलब्धि से राजनीतिक विश्लेषकों ने मान लिया था कि एक बार फिर से राष्ट्रीय राजनीति में एकदलीय शासन का वर्चस्व स्थापित हो गया है । 2014 से पहले, भारत ने आखिरी बार 1984 में लोकसभा में एकदलीय बहुमत देखा था, जब प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद राजीव गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस ने 400 से अधिक सीटें जीती थीं । लेकिन 18वीं लोकसभा चुनाव के नतीजों ने नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के दस साल के एकदलीय शासन का अंत कर दिया है । भाजपा संसद में अपने बल पर सरकार बनाने के लिए बहुमत का आंकड़ा पार करने में विफल रही है । वर्तमान समय में केंद्र में भाजपा के नेतृत्व में एनडीए सरकार है लेकिन इस सरकार की बुनियाद जनता दल (यूनाइटेड), तेलगु देशम पार्टी, शिवसेना (शिंदे) के समर्थन पर टिकी हुई है । भारत की राष्ट्रीय राजनीति में एक बार फिर से गठबंधन राजनीति का महत्व बढ़ गया है ।

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How to cite this article:
चन्द्रा सत्या प्रकाश. भारत की राष्ट्रीय राजनीति में गठबंधन राजनीति का महत्व : एक विश्लेषणात्मक अवलोकन. Int. J. Arts Humanit. Social Stud. 2025;7(2):298-306. DOI: 10.33545/26648652.2025.v7.i2d.315
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