सतेन्द्र कुमार, डॉ० धर्मेन्द्र कुमार
ब्रिटिश शासन द्वारा लागू किया गया क्रिमिनल ट्राइब्स एक्ट (1871) भारतीय समाज के इतिहास में औपनिवेशिक दमन का सबसे कुख्यात उदाहरण है, जिसने अनेक जातियों और घुमंतू समुदायों को “जन्मजात अपराधी” की श्रेणी में रखकर उनके सामाजिक अस्तित्व, सम्मान और जीवन–उपार्जन पर गहरा प्रहार किया। उत्तर भारत का गुर्जर समुदाय, जो ऐतिहासिक रूप से कृषक, पशुपालक, ग्रामीण सुरक्षा तंत्र का महत्त्वपूर्ण अंग और स्थानीय सत्ता–संरचना में प्रभावशाली था, इस अधिनियम के कारण प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित हुआ।
यद्यपि सभी क्षेत्रों में गुर्जरों को औपचारिक रूप से “क्रिमिनल ट्राइब” घोषित नहीं किया गया, परंतु ब्रिटिश प्रशासनिक रिपोर्टों में उन्हें “turbulent”, “rebellious caste”, “dangerous tribe”, “suspected class” आदि शब्दों से चिह्नित किया गया। परिणामस्वरूप उनकी सामाजिक छवि, आर्थिक आजीविका, राजनीतिक भागीदारी, भूमि अधिकार, और शिक्षा–उपलब्धता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा।यह शोध–पत्र गुर्जर जाति पर क्रिमिनल ट्राइब्स एक्ट के बहुआयामी प्रभावों का विश्लेषण करता है। अध्ययन से स्पष्ट होता है कि यह कानून केवल एक विधिक प्रावधान नहीं था, बल्कि एक ऐसी औपनिवेशिक रणनीति थी जिसने गुर्जरों को सामाजिक रूप से बदनाम किया, आर्थिक रूप से कमजोर किया और राजनीतिक रूप से हाशिए पर पहुँचाया; परंतु साथ ही इस दमन ने समुदाय में राजनीतिक चेतना, संगठन, और प्रतिरोध भावना को भी प्रबल किया।
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