Abstract:
कोई भी देश यदि अपना आर्थिक विकास करना चाहता है तो उसे अपने अर्थव्यवस्था की विशेषता और प्रकृति के अनुसार योजनाएँ बनानी पड़ती है और इस योजना के दौरान एक निश्चित मार्ग तय करना होता है। इस निश्चित मार्ग के कुछ क्रम तय करना आवश्यक होता है। “हमारे देश की प्रकृति और परिस्थिति को ध्यान में रखते हुए, पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी का मत था कि खेती, उद्योग, परिवहन एवं व्यापार और समाज-सुरक्षा-सेवा यह सीढ़ियों का क्रम सभी दृष्टियों से उपयुक्त है। सभी क्षेत्र एक दूसरे के साथ इतने जुड़े हैं कि हम इनमें से किसी एक क्षेत्र का विचार अन्य क्षेत्रों को छोड़कर नहीं कर सकते हैं।“ पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी के अनुसार “अल्प विकसित देश पहले खेती का विचार करें, अपने खेती को मजबूत बनाए। कृषि के बाद औद्योगिकरण के विषय में सोचना चाहिए तभी उनकी आर्थिक समस्या समाप्त होगी। यदि अल्प विकसित देश अपनी खेती को महत्त्व न देकर पहले औद्योगिकरण की ओर बढ़ेंगे तो उनका आर्थिक विकास हो पाना सम्भव नहीं है।“ पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी का यह भी कहना था कि “यदि खेती में प्रकृति की सामान्य कृपा रही तो हमारा देश अन्न के उत्पादन में आत्मनिर्भर बन जाएगा।“