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International Journal of Arts, Humanities and Social Studies
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Vol. 7, Issue 1, Part J (2025)

भारतीय जैन दर्शन में अहिंसा की महत्ता व विकास

Author(s):

रमेश चन्द्र बैरवा

Abstract:

अहिंसा का शाब्दिक अर्थ है, हिंसा न करना। अहिंसा के बिना मानव समाज की कल्पना करना गलत है। अहिंसा का विवेचन हमारे धर्म एवं दर्शनों में सदियों से होता चला आ रहा है। जैन धर्म में अहिंसा का प्रमुख स्थान है, जैन दर्शन का अनीश्वरवादी अवधारणा इसी तत्त्व से उत्पन्न है, जो प्राणी मात्र के प्रति प्रेम एवं मैत्री-भावना रखने के सिद्धान्त का प्रतिपादक है। सभी जीवों के प्रति संयम और अनुशासन तथा एक-दूसरे के संबंध में समता का भाव रखना ही निपुण तेजस्वी अहिंसा है। यह परम सुख देने में समर्थ है। इसलिए जैन धर्म से संबंधित सभी नियम परोक्ष या अपरोक्ष रूप से अहिंसा पर आधारित है। अहिंसा संसार का शाश्वत सिद्धान्त है। यह सदैव जीव-जन्तुओं की हिंसा का विरोध करता है, चाहे वह एक मनुष्य के रूप में हो, किसी जीव समूह के रूप में हो अथवा किसी भी अन्य रूप में। अहिंसा वर्तमान उपहासों के बावजूद भी काम, क्रोध, लोभ, कपट इत्यादि दूषित भावों के विरूद्ध लगातार संघर्ष करता रहा है। प्राचीन काल से जैन धर्म अपनी श्रद्धा एवं आचरण के लिए कष्ट एवं यातनाएं झेलता रहा, लेकिन उसके बावजूद भी उसने ईश्वर के सामने अपनी सहायता एवं रक्षा के लिए हाथ नहीं फैलायी और न अपने तथाकथित शत्रुओं से बदले की भावना रखी।

Pages: 723-727  |  610 Views  153 Downloads


International Journal of Arts, Humanities and Social Studies
How to cite this article:
रमेश चन्द्र बैरवा. भारतीय जैन दर्शन में अहिंसा की महत्ता व विकास. Int. J. Arts Humanit. Social Stud. 2025;7(1):723-727. DOI: 10.33545/26648652.2025.v7.i1j.275
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