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International Journal of Arts, Humanities and Social Studies
Peer Reviewed Journal

Vol. 7, Issue 1, Part I (2025)

साम्राज्य और संधि: मुगलों और राजपूतों के बीच बदलते समीकरण

Author(s):

खुशबू कुमारी

Abstract:

मुगल और राजपूतों के संबंधों का इतिहास बाबर के भारत आगमन (1526) के साथ आरंभ होता है। बाबर के समय में ये संबंध मुख्यतः युद्ध और टकराव पर आधारित थे। खानवा का युद्ध (1527) इसका प्रमुख उदाहरण है, जिसमें बाबर ने राणा सांगा को पराजित किया। हुमायूं के काल में ये संबंध सीमित रहे क्योंकि वह स्वयं अफगानों और शेर शाह सूरी से संघर्षरत था। राजपूत-मुगल संबंधों में असली परिवर्तन अकबर के शासनकाल (1556–1605) में आया। अकबर ने एक रणनीतिक दृष्टिकोण अपनाते हुए राजपूतों से वैवाहिक और राजनीतिक गठबंधन बनाए। उदाहरणस्वरूप, आमेर के राजा भारमल की पुत्री जोधा बाई से विवाह और उनके पुत्र मानसिंह को उच्च पद प्रदान करना, एक बड़ा कदम था। इससे मुगलों और राजपूतों के बीच विश्वास और सहयोग की नींव पड़ी। अकबर ने साम्राज्य विस्तार की नीति में बलपूर्वक विजय की बजाय राजनीतिक समावेशन को प्राथमिकता दी। कई राजपूत शासक मुगल दरबार का हिस्सा बने, जिससे मुगल प्रशासन को मजबूती मिली। हालाँकि, कुछ राजपूत जैसे मेवाड़ के राणा प्रताप ने इस नीति को अस्वीकार किया और संघर्ष का रास्ता अपनाया। इस प्रकार, बाबर के आक्रमण से लेकर अकबर की संधि-नीति तक, मुगल-राजपूत संबंध शत्रुता से सहयोग तक का सफर तय करते हैं, जो भारतीय इतिहास में एक अद्वितीय उदाहरण प्रस्तुत करता है।

Pages: 667-669  |  80 Views  43 Downloads


International Journal of Arts, Humanities and Social Studies
How to cite this article:
खुशबू कुमारी. साम्राज्य और संधि: मुगलों और राजपूतों के बीच बदलते समीकरण. Int. J. Arts Humanit. Social Stud. 2025;7(1):667-669. DOI: 10.33545/26648652.2025.v7.i1i.256
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