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International Journal of Arts, Humanities and Social Studies
Peer Reviewed Journal

Vol. 7, Issue 1, Part H (2025)

कमलेश्वर के गद्य-साहित्य में स्थानीय रंग की महत्ता

Author(s):

घनश्याम मीना

Abstract:

किसी भी संस्कृति और सभ्यता में स्थानीयता अविच्छिन्न तत्त्व होता है। ‘स्थानीय‘ से अभिप्राय स्थान विशेष के क्रियाकलाप, वृत्ति और प्रवृत्ति से है। विभिन्न साहित्यकारों ने स्थानीय जीवन को लेकर उसको ‘लोक‘ के रूप में संबद्ध करते हुए रचनाओं का सौन्दर्यवर्धन किया है तथा समाज में घटित होने वाले समस्त क्रियाकलापों और मानव व्यवहार की दशा-दिशा को प्रस्तुत किया है, इन्हीं साहित्यकारों में कमलेश्वर का नाम भी प्रमुखता से लिया जा सकता है। कमलेश्वर के आयामों में गद्य-साहित्य में स्थानीय रंग विभिन्न तरीकों से अभिव्यक्त हुआ है, जो विशेषकर भारतवर्ष की प्राचीन और नवीन सभ्यता तथा संस्कृति के परिवेश और व्यवहार-विस्तार को अपने आप में समेटता प्रतीत होता है। स्पष्ट कहें तो सभ्यता संस्कृति, रहन-सहन, खान-पान, भौगोलिक क्षेत्र, वेशभूषा, लोक-तत्त्व आदि मिलकर सभी स्थानीय रंग का सम्पूर्ण ‘उल्था’ प्रस्तुत करते हैं। उसका पूरा परिचय, पूरी भूमिका निभाते हैं। कमलेश्वर ने अपनी विभिन्न गद्य विद्याओं जैसे-उपन्यास, कहानी, लेख, संस्मरण, आत्मकथा आदि में स्थानीय जीवन को नये रूप में प्रस्तुत किया और नई परिभाषा दी है जैसे- ‘अपने देश में...‘ नामक कहानी में कमलेश्वर ने विदेशी कथा प्रसंग लेकर एक नवीन सृजन किया है, उसे एक विशिष्ट आयाम देकर प्रस्तुत किया है, वे लिखते हैं-“क्या तुम्हारे देश के आदमी इतने उदासीन, इतने सभ्य, इतने निरासक्त और इतने अजनबी हैं।“

Pages: 613-617  |  44 Views  23 Downloads


International Journal of Arts, Humanities and Social Studies
How to cite this article:
घनश्याम मीना. कमलेश्वर के गद्य-साहित्य में स्थानीय रंग की महत्ता. Int. J. Arts Humanit. Social Stud. 2025;7(1):613-617. DOI: 10.33545/26648652.2025.v7.i1h.265
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