धीरज प्रताप मित्र, विशाल प्रताप मित्र
बहुजन समाज पार्टी (BSP) का उदय 1984 में मान्यवर कांशीराम के नेतृत्व में एक सामाजिक न्याय आंदोलन के रूप में हुआ जिसका प्राथमिक उद्देश्य दलित, पिछड़े तथा समाज में हाशिए पर स्थित अन्य समुदायों को राजनीतिक सशक्तिकरण प्रदान करना था। सुश्री मायावती के नेतृत्व में BSP ने 2007 में उत्तर प्रदेश में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई जो भारतीय राजनीति में दलित नेतृत्व की एक ऐतिहासिक उपलब्धि थी। यद्यपि कि वर्ष 2012 के बाद से ही BSP का राजनीतिक प्रभाव लगातार घटने लगा जिसका प्रमाण 2014 एवं 2019 के लोकसभा चुनावों में इसका कमजोर प्रदर्शन रहा। प्रस्तुत शोध आलेख BSP के ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य, चुनावी प्रदर्शन तथा सामाजिक आधार में आए परिवर्तनों का विश्लेषण करने का एक प्रयत्न है। समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से कहें तो यह जाति-आधारित राजनीति, दलित चेतना तथा पार्टी के आगामी नेतृत्व संकट की पड़ताल करता है। साथ ही इस आलेख में मायावती की एकल नेतृत्व शैली, संगठनात्मक संरचना, गठबंधन रणनीति में समयोचित बदलाव तथा BSP की विचारधारा में आए परिवर्तनों को भी परखा गया है। इस आलेख हेतु चुनाव आयोग के आँकड़ों, समाचार पत्रों तथा शोधपत्रों के विश्लेषण से यह स्पष्ट होता है कि BSP का पतन केवल चुनावी असफलता तक सीमित नहीं है अपितु इसके पीछे व्यापक सामाजिक-राजनीतिक कारण भी कार्यरत हैं। समकालीन संदर्भ में प्रस्तुत आलेख BSP के संभावित पुनरुत्थान की संभावनाओं की भी समीक्षा करता है एवं यह प्रश्न उठाता है कि क्या यह पार्टी भविष्य में अपनी खोई हुई राजनीतिक शक्ति पुनः प्राप्त कर सकती है?
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