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International Journal of Arts, Humanities and Social Studies
Peer Reviewed Journal

Vol. 7, Issue 1, Part F (2025)

भारतीय खेलों का हिंदी साहित्य में चित्रण: एक ऐतिहासिक अध्ययन

Author(s):

डॉ. प्रेमलता गाँधी

Abstract:

हिंदी साहित्य में भारतीय खेलों का चित्रण न केवल खेलों की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि को उजागर करता है, बल्कि समाज में खेलों की भूमिका और उनके महत्व को भी प्रतिबिंबित करता है। प्राचीन साहित्य में व्यायाम, कुश्ती, धनुर्विद्या, और योग का उल्लेख मिलता है, वहीं मध्यकालीन और आधुनिक साहित्य में खेलों का स्वरूप बदलता दिखाई देता है। खेल केवल मनोरंजन के साधन नहीं रहे, बल्कि वे व्यक्ति के शारीरिक, मानसिक और नैतिक विकास में भी सहायक रहे हैं।
संस्कृत साहित्य में धनुर्विद्या और व्यायाम का विशेष रूप से उल्लेख किया गया है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि खेलों को युद्ध-कौशल और आत्मरक्षा के साधन के रूप में भी देखा जाता था। महाकाव्यों में अर्जुन, भीम और हनुमान जैसे चरित्रों के माध्यम से कुश्ती, गदायुद्ध, और अन्य शारीरिक कलाओं का चित्रण मिलता है। मध्यकाल में भक्ति साहित्य में खेलों का रूप आध्यात्मिकता से जुड़ गया, जहाँ योग और ध्यान की विधियों को आत्मिक शुद्धि और अनुशासन का साधन माना गया। संतों और कवियों ने योगासन और ध्यान के माध्यम से शरीर और आत्मा के संतुलन को महत्व दिया।
आधुनिक हिंदी साहित्य में खेलों को एक सामाजिक और राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में देखा गया है। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान खेलों का प्रयोग राष्ट्रीयता की भावना को जागृत करने के लिए किया गया। महादेवी वर्मा, प्रेमचंद और दिनकर जैसे साहित्यकारों ने अपने लेखन में खेलों को समाज के संघर्ष और अनुशासन से जोड़कर प्रस्तुत किया। स्वतंत्र भारत में खेलों ने एक नए रूप में विकास किया, जहाँ हिंदी साहित्य में ओलंपिक, क्रिकेट, हॉकी और अन्य खेलों के माध्यम से राष्ट्रीय गौरव को बढ़ाने पर बल दिया गया।
 

Pages: 414-418  |  533 Views  121 Downloads


International Journal of Arts, Humanities and Social Studies
How to cite this article:
डॉ. प्रेमलता गाँधी. भारतीय खेलों का हिंदी साहित्य में चित्रण: एक ऐतिहासिक अध्ययन. Int. J. Arts Humanit. Social Stud. 2025;7(1):414-418. DOI: 10.33545/26648652.2025.v7.i1f.197
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