डॉ. प्रेमलता गाँधी
भारतीय संत परंपरा में योग और शारीरिक व्यायाम का महत्वपूर्ण स्थान रहा है। कबीर, तुलसीदास और सूरदास के साहित्य में योग की आध्यात्मिक और भौतिक व्याख्या गहराई से की गई है। उनके काव्य में शारीरिक अनुशासन, योग साधना और ध्यान के माध्यम से आत्मज्ञान की प्राप्ति का मार्ग दिखाया गया है। यह शोध-पत्र इन तीन महान संत कवियों के साहित्य में योग और व्यायाम के महत्व को विस्तार से विश्लेषित करता है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि योग न केवल आत्मशुद्धि का साधन है, बल्कि यह सामाजिक और नैतिक मूल्यों की स्थापना में भी सहायक है।
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