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International Journal of Arts, Humanities and Social Studies
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Vol. 7, Issue 1, Part D (2025)

शाबर मंत्र: उत्पत्ति, स्वरूप एवं लोकमान्यता का समाजशास्त्रीय अध्ययन

Author(s):

धीरज प्रताप मित्र, विशाल प्रताप मित्र

Abstract:

शाबर मंत्र भारतीय धार्मिक एवं आध्यात्मिक परंपराओं में एक विशिष्ट स्थान रखते हैं जो लोक प्रथाओं तथा तांत्रिक विश्वासों में गहराई से निहित हैं। संस्कृत के शास्त्रीय मंत्रों के स्वरूप के विपरीत ये मंत्र क्षेत्रीय भाषाओं में रचित होते हैं जिससे आम जनता हेतु इनकी पहुँच तथा समझ आसान हो जाती है। प्रस्तुत आलेख शाबर मंत्रों के ऐतिहासिक विकास, सामाजिक स्वीकृति एवं इनके सांस्कृतिक महत्व का विश्लेषण करता है साथ ही संकट निवारण, सुरक्षा, उपचार तथा समृद्धि में इनकी भूमिका को उजागर करता है। इस आलेख में गुरु गोरखनाथ तथा नाथ संप्रदाय के योगदान पर भी प्रकाश डाला गया है जो शाबर मंत्रों के व्यापक धार्मिक परिदृश्य में एकीकृत होने की प्रक्रिया को दर्शाता है। यद्यपि कि शाबर मंत्रों के प्रभाव को लेकर विवाद भी बना हुआ है तथा इनके गूढ़ स्वभाव एवं वैज्ञानिक प्रमाणों की अनुपस्थिति के कारण भी इन्हें संदेह की दृष्टि से देखा जाता है। कुछ आलोचकों का तर्क है कि इन मंत्रों की प्रभावशीलता मुख्य रूप से मनोवैज्ञानिक होती है जो विश्वास, आत्म-सुझाव आदि से प्रभावित होती है न कि किसी अलौकिक शक्ति से तथापि डिजिटल मीडिया के प्रसार के साथ ही आधुनिक समय में इनकी निरंतर प्रासंगिकता एवं लोकप्रियता में वृद्धि देखी गई है। यह आलेख शाबर मंत्रों के व्यावसायीकरण, इनके कानूनी एवं नैतिक पहलुओं तथा आधुनिक समाज में इनकी भूमिका पर भी विचार करता है। समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से इन मंत्रों का अध्ययन यह समझने हेतु भी आवश्यक है कि परंपरागत आध्यात्मिक विश्वास किस प्रकार समकालीन समाज में संरक्षित एवं पुनः प्रतिष्ठित हो रहे हैं।

Pages: 225-230  |  71 Views  19 Downloads


International Journal of Arts, Humanities and Social Studies
How to cite this article:
धीरज प्रताप मित्र, विशाल प्रताप मित्र. शाबर मंत्र: उत्पत्ति, स्वरूप एवं लोकमान्यता का समाजशास्त्रीय अध्ययन. Int. J. Arts Humanit. Social Stud. 2025;7(1):225-230. DOI: 10.33545/26648652.2025.v7.i1d.184
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