भरत सिंह मीना
राजस्थान राज्य की कृषि उत्पादन में रसायनों के बढ़ते प्रयोग से उत्पादन में बढोतरी तो हुई है किन्तु उनकी गुणवत्ता पर विपरीत असर पड़ा है। मृदा स्वास्थ्य खराब हुआ है। जिसके फलस्वरूप मृदा के भौतिक, रासायनिक और जैविक गुणों में व्यापक परिवर्तन आ चुका है तथा मृदा में लाभकारी सूक्ष्म जीवों की संख्या में कमी आयी है। जहरीले कृषि रसायनों के प्रयोग से पर्यावरण भी प्रदूषित हुआ है। प्रकृति में किसानों के मित्र जीवों की संख्या भी पहले की तुलना में कम हुई है। मानव स्वास्थ्य पर भी इसका विपरीत असर पडा है। उत्पादन लागत निरंतर बढती जा रही है। फलस्वरूप हमें जैविक खेती को वर्तमान परिपेक्ष्य में अपनाने की आवश्यकता महसूस हुई है। जिससे उत्पादन में स्थायित्व आने के साथ-साथ अच्छी गुणवत्ता युक्त कृषि उत्पाद लिए जा सकें। किसान स्वयं कृषि आदान तैयार कर इनका प्रयोग करें जिससे उत्पादन लागत में कमी आयें एवं मृदा में लाभकारी सूक्ष्म जीवों की संख्या में भी बढ़ोत्तरी होने के साथ-साथ इसकी उर्वराशक्ति बनी रहे। इस उद्देश्य से जैविक कृषि वर्तमान में सर्वाधिक विचारणीय एवं अनुकरणीय कदम है।
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