डाॅ. रवीन्द्र कुमार सिंह
एक स्त्री को क्या दुःख है क्या समस्या है और क्या परिस्थिति है एक स्थिति विशेष में इसका सही आकलन करने के लिए साहित्य जगत में स्त्री जितना सक्षम हो सकती है उतना ही पुरुष नहीं। स्त्री अपनी समस्याओं से प्रत्यक्षतः जुड़ी है, उसकी प्रखर अनुभूति उनके ही पास है, वह अपनी पीड़ा का दंश स्वतः भोगती हैं। इसलिए उनकी अभिव्यक्ति में ज्यादा यथार्थ और गांभीर्य समाहित होना स्वाभाविक है। अतएव स्त्री लेखिकाएँ चाहे वो मन्नू भण्डारी, प्रभा खेतान, मृणाल पाण्डे, मृदुला गर्ग हों या चित्रा मुद्गल, गीतांजली, मैत्रोयी पुष्पा अथवा नासिरा शर्मा हों, पुरुष लेखकों के समानांतर न सिर्फ अपनी अभिव्यक्ति दे रही हैं, अपितु साहित्यिक जगत से लेकर समीक्षकों, आलोचकों तक को यह स्वीकार करने के लिए विवश कर रही हैं कि ‘‘महिलाओं का लेखन हिंदी का सबसे सशक्त लेखन है, इसके पीछे पुरुष कथाकारों की दुनिया लगभग पीछे छूट गयी है‘‘ (राजेन्द्र यादव)।
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