शुभा लढ्ढा
महिला जनप्रतिनिधि का अर्थ है समस्त वर्गों एवं स्तरों से प्रजातांत्रिक तरीके से चुनी गई या नामांकित महिला जो ग्राम पंचायत, जनपद पंचायत, जिला पंचायत, नगर पालिका, नगर निगम, विधानसभा, लोकसभा, राज्यसभा आदि में पंच, सरपंच, पार्षद या जिला पंचायत प्रतिनिधि, विधायक, सांसद आदि की हैसियत से कार्य करने हेतु अधिकृत है।
महिला जनप्रतिनिधि द्वारा ही ग्रामीण विकास की बात करने के पीछे यह तर्क है कि भारत में महिलाओं की संख्या भी काफी है, अतरू इतनी बड़ी जनशक्ति के लिये उन्हें जनप्रतिनिधि बनाना आवश्यक है। महिलाओं के जनप्रतिनिधि बनने से उनकी झिझक और घबराहट दूर होगी तथा उनमें आत्मनिर्भरता का विकास होगा, साथ ही आत्मबल में वृद्धि होगी। महिलाओं के जनप्रतिनिधि बनने से राजनीतिक एवं सामाजिक वातावरण सरल होगा एवं टकराव तथा अहम तुष्टि की भावना विकसित नहीं होगी। इससे विकास कार्यों में बाधा नहीं आएगी एवं ग्रामीण विकास तेजी से हो सकेगा।
यह सत्य है कि अभी भी महिलाएँ सामाजिक, आर्थिक, मनोवैज्ञानिक और राजनीतिक दृष्टि से पिछड़ी हुई है। अतरू उनकी उन्नति हेतु उन्हें आगे लाकर उन पर जिम्मेदारी डालना आवश्यक है।
इस पहलू से विकास के तर्क पर प्रकाश डाले तो हम पाते हैं कि महिलाएँ स्वयं कई दृष्टियों से पिछड़ी एवं लज्जाशील होती हैं, अतरू विकास संबंधी जागरूकता को लेकर लोग उन्हें संशय की दृष्टि से देखते हैं। ग्रामीण विकास के लिये विकास कार्यों की योजना बनाना, कार्यस्थल का दौरा करना, भ्रष्ट अधिकारियों एवं कर्मचारियों से निपटना तथा विकास कार्यों की तकनीकी जानकारी रखना आदि महिलाओं हेतु उचित एवं योग्य कार्य नहीं माने जाते। राजनीति एवं विकास संबंधी कार्यों की जिम्मेदारी लेने से उनकी स्वयं की जिम्मेदारियाँ जैसे- बच्चे का पालन एवं पारिवारिक दायित्व संभालने आदि में बाधा आएगी।
देश में महिलाओं की बड़ी जनसंख्या होने के बावजूद अगर उनकी भागीदारी देश के विकास में न ही तो इस जनसंख्या को उचित अवसर नहीं प्राप्त होगा। इस विशाल जनशक्ति की भागीदारी के बिना किसी भी प्रकार के विकास की कल्पना नहीं की जा सकती। इसलिये ग्रामीण विकास के लिये महिलाओं की भागीदारी महत्त्वपूर्ण मानी गई है।
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