अमित कुमार सोनी, डॉ. सीमा चतुर्वेदी,
विश्व के निर्माण से लेकर मनुष्य के जन्म और मनुष्य के द्वारा सम्पादित विभिन्न कार्यों एवं जीवन दर्शन सम्बन्धी विवेचना वेदों (ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद) से प्राप्त होती है। इन वेदों में कला से सम्बंधित विस्तृत जानकारी उपलब्ध है। ‘वेद’ का शाब्दिक अर्थ है- ‘ज्ञान’। आर्यों का प्राचीनतम ज्ञान इन्हीं वेदों में सुरक्षित है। ‘ऋग्वेद’ प्राचीनतम वेद है। जिसमें देवताओं कीे प्रार्थना, स्तुतियों और देवलोक में उनकी स्थित का वर्णन किया गया है। ऋग्वेद में जल, वायु, सौर, मानस और हवा द्वारा चिकित्सा की जानकारी मिलती है। ‘यजुर्वेद’ में यज्ञ के विधि-विधान व नियमों का वर्णन है। जो पूजा विधि को दर्शाता है। वही ‘सामवेद’ में पूजनीय देवताओं के आवाहन के लिए यज्ञ, अनुष्ठान और हवन के समय ग्रन्थ के मंत्र संगीतमय गाये जाते है। ‘अथर्ववेद’ से आयुर्वेद में विश्वास किया जाने लगा था जिसमें अनेक प्रकार की चिकित्सा पद्धतियो का वर्णन किया गया है।
प्रागैतिहासिक काल से लेकर वर्तमान काल तक मनुष्य ने देवी-देवताओं की आराधना व पूजा-पाठ किया है जो एक विशिष्ट स्थान पर की जाती थी। यही स्थान प्राचीन वेदों में देवालय, देवल, मंदिर, पूजा-ग्रह, कोविल, प्रासाद या क्षेत्रम् के नाम से जाना जाता रहा है। भारत में प्रासाद या मंदिर का निर्माण कहाँ से हुआ इस का कोई सटीक प्रमाण नहीं मिलता परन्तु मंदिर स्थापत्य के विकास क्रम को जरूर देखा जा सकता है। प्रारंभ में प्रासाद का निर्माण एक पूजन स्थल के रूप में हुआ जिसमें प्रतीक चिन्हों को एक स्थान पर बनाया गया। वैदिक काल में अग्नि, लकड़ी के लाढ व इन्द्र, वायु, जल की पूजा की जाती थी। वैदिक कला में ही पूजा स्थल ऊँचे चबूतरे पर घास-फूस के द्वारा गुम्बद, चार दीवार से एक चोकोरनुमा कुटीर का निर्माण किया गया। समय के परिवर्तन के साथ पूजा स्थल के आकारों में आवश्यकता के अनुरूप विभिन्न प्रकार के बदलाव किये जाते रहे। जैसे- शिखर, गवाक्ष, गर्भग्रह, अन्तराल, महामंडप, मंडप, अर्धमंड़प (प्रवेश कक्ष), भोगमंडप, नटमंडप, गोपुरम आदि।
मंदिरों (पूजा स्थल) का निर्माण भारतवर्ष में भिन्न-भिन्न धर्मानुयायीयों के द्वारा किया गया। मंदिर स्थापत्य के निर्माण में भारत में तीन प्रमुख शैलियों है।
1. नागर शैली
2. द्रविड़ शैली
3. वेसर शैली
भारत के विभिन्न क्षेत्रों में इन तीन प्रमुख शैलियों की कई उप शैली देखि जा सकती है। उत्तर भारत में नागर शैली की उप शैली- लैटिना (रेखा प्रसाद), भूमिज, फामसाना, वल्लभी आदि प्राप्त होती है। जो कक्ष के अनुरूप तो सामान होती है परन्तु शिखर के द्वारा इन शैलियों को अलग-अलग देखा जा सकता है। उसी प्रकार राजस्थान जो उत्तरी भारतीय क्षेत्र में आता है यहाँ नागर शैली के मंदिर प्राप्त होते है। राजस्थान में मंदिरों स्थापत्य के विकास क्रम में हाड़ोती के बारां क्षेत्र के मंदिरों का भी विशेष महत्त्व है। जो नागर शैली की एक उप शाखा भूमिज शैली की मंदिर स्थापत्य के रूप में बारां क्षेत्र में बिखरी हुई है।
Pages: 09-12 | 839 Views 431 Downloads