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International Journal of Arts, Humanities and Social Studies

Vol. 5, Issue 2, Part A (2023)

राजेन्द्र यादव के उपन्यासों में वैयक्तिक समस्याओं का स्वरूप

Author(s):

डाॅ. गीता पाण्डेय, रीता यादव

Abstract:

स्वातंत्र्योत्तर हिन्दी कथा साहित्य में एक सशक्त हस्ताक्षर के रूप में राजेन्द्र यादव की गणना होती है। उन्होंने शहरी मध्यवर्गीय जीवन के सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, नैतिक आदि विभिन्न पक्षों को लेकर अपने कथा साहित्य की रचना की है। इसमें मध्यवर्ग के ध्वंसोन्मुखी समाज की रूढ़ियों, विषमताओं, कुण्ठाओं और अंधविश्वासों का सम्यक् विवेचन किया गया है। आधुनिक शहरी मध्यवर्ग-जीवन के जितने यथार्थ चित्र उन्होंने उपस्थित किए हैं, उतने किसी भी अन्य स्वतन्त्रता-परवर्ती कथाकार ने नहीं किए हैं। आधुनिक युगबोध और भावबोध को पहचानने की उनकी क्षमता ही इससे व्यक्त होती है। उन्होंने कला और जीवन का सामंजस्य करके उनका समन्वित रूप ही अपने उपन्यास और कहानियों के रूप में प्रस्तुत किया है। उनके कथा साहित्य में मानवतावाद का वह नवीन रूप परिलक्षित होता है, जिसमें परम्परागत आदर्शों और मूल्यों के साथ विकसित प्रवृत्तियों का समन्वय है। इस दृष्टि से उनके उपन्यास और कहानी हिन्दी की विशिष्ट उपलब्धियों के रूप में स्वीकार किए जायेंगे।

स्वातंत्र्योत्तर भारत में मध्यवर्ग, घुटन और टूटन का शिकार बन गया था। राजेन्द्र यादव ने मध्यवर्ग के कथाकार होने के कारण अपने कथा साहित्य में मध्यवर्ग की दीनता-दासता, अवसादपूर्ण विडम्बनों, विसंगतियाँ-विद्रूपतों, बनते-बिगड़ते सामाजिक और वैयक्तिक सम्बन्ध आदि का चित्रण पूरी ईमानदारी के साथ किया है। समसामयिक मध्यवर्ग की युवा-पीढ़ी में जो क्षोभ और आक्रोश की भावना है उसके शक्तिशाली वक्ता के रूप में कथाकार राजेन्द्र यादव की ख्याति है, जो उनके उपन्यासों में स्पष्ट परिलक्षित भी होती है।

Pages: 66-68  |  110 Views  41 Downloads


International Journal of Arts, Humanities and Social Studies
How to cite this article:
डाॅ. गीता पाण्डेय, रीता यादव. राजेन्द्र यादव के उपन्यासों में वैयक्तिक समस्याओं का स्वरूप. Int. J. Arts Humanit. Social Stud. 2023;5(2):66-68. DOI: 10.33545/26648652.2023.v5.i2a.105
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