Abstract:
हिमालय रिसायती पà¥à¤°à¤œà¤¾à¤®à¤£à¥à¤¡à¤² में जन कà¥à¤°à¤¾à¤‚ति लाने के लिठधामी पà¥à¤°à¥‡à¤® पà¥à¤°à¤šà¤¾à¤°à¤¿à¤£à¥€ सà¤à¤¾ का हिमालय रिसायती पà¥à¤°à¤œà¤¾à¤®à¤£à¥à¤¡à¤² में जन जागरण में सहयोग लाने में महतà¥à¤µà¤ªà¥‚रà¥à¤£ à¤à¥‚मिका रही है। धामी जन कà¥à¤°à¤¾à¤‚ति पहाड़ों में चल रहे जन जागरण आंदोलनों का ही परिणाम था। यह कà¥à¤°à¤¾à¤‚ति धामी रियासत में चल रही दमनकारी नीतियों के विरà¥à¤¦à¥à¤§ à¤à¤• जनाकà¥à¤°à¥‹à¤¶ था। इस कà¥à¤°à¤¾à¤‚ति की शà¥à¤°à¥‚आत करने के लिठपहाड़ों में सरà¥à¤µà¤ªà¥à¤°à¤¥à¤® आम जनता ने à¤à¤¾à¤— लिया। इसका मà¥à¤–à¥à¤¯ पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤œà¤¨ बेगार तथा समापà¥à¤¤à¤¿, à¤à¥‚मि लगान में पचà¥à¤šà¤¾à¤¸ फीसदी कमी, धमी राजà¥à¤¯ पà¥à¤°à¤œà¤¾à¤®à¤‚डल को मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾, नागरिक अधिकारों की सà¥à¤µà¤¤à¤‚तà¥à¤°à¤¤à¤¾, राजà¥à¤¯ की जनता पर लगाठगये पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¬à¤‚ध और अवरोधों की समापà¥à¤¤à¤¿ व पà¥à¤°à¥‡à¤® पà¥à¤°à¤šà¤¾à¤°à¤¿à¤£à¥€ सà¤à¤¾ के सदसà¥à¤¯à¥‹à¤‚ की जबà¥à¤¤ की गई संपति की वापसी इतà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¿à¥¤ यदि रियासत के राणा दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ समय रहते हमारी मागों पर तà¥à¤µà¤°à¤¿à¤¤ और उचित कारà¥à¤°à¤µà¤¾à¤ˆ नहीं की गई तो शीघà¥à¤° ही à¤à¤• शिषà¥à¤Ÿà¤®à¤£à¥à¤¡à¤² राणा से मिलेगा और उसके बावजूद à¤à¥€ राणा ने कोई कदम नहीं उठाया तो इसके तà¥à¤°à¤‚त पशà¥à¤šà¤¾à¤¤ धामी पà¥à¤°à¤œà¤¾à¤®à¤£à¥à¤¡à¤² राणा के विरà¥à¤¦à¥à¤§ जनकà¥à¤°à¤¾à¤‚ति करेगा। अतः 16 जà¥à¤²à¤¾à¤ˆ 1939 को धामी के लिठà¤à¤• जतà¥à¤¥à¤¾ à¤à¤¾à¤—मल सौहटा, पंडित सीताराम व à¤à¤¾à¤¸à¥à¤•रानंद शरà¥à¤®à¤¾ की अधà¥à¤¯à¤•à¥à¤·à¤¤à¤¾ में रवाना हà¥à¤†à¥¤ à¤à¥€à¥œ को बेकाबू होता देखकर राणा बौखला गया और उनके à¤à¥€à¥œ को तितर-बितर करने के लिठआनन-फानन में फायर करने के आदेश दिये। जिससे वहां खलबली मच गई, बहà¥à¤¤ से सतà¥à¤¯à¤¾à¤—à¥à¤°à¤¹à¥€ घायल हà¥à¤ और दो वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ की मृतà¥à¤¯à¥ हो गई। पहाड़ पर घटित होने वाली यह पà¥à¤°à¤¥à¤® खूनी घटना थी जिसने महातà¥à¤®à¤¾ गांधी और जवाहरलाल नेहरू जैसे राषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€à¤¯ नेताओं का धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ आकरà¥à¤·à¤¿à¤¤ किया। बाद में इसकी तà¥à¤²à¤¨à¤¾ जलियांवाला बाग नर संहार से à¤à¥€ की जाती है।