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International Journal of Arts, Humanities and Social Studies
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Vol. 2, Issue 2, Part A (2020)

पं. दीनदयाल उपाध्याय का एकात्म मानव दर्शन तथा आर्थिक विचार

Author(s):

डॉ. शेफालिका राय

Abstract:
भारत की आजादी के समय विश्व दो ध्रुवीय विचारों में बंटा था, पूंजीवाद और साम्यवाद। यद्यपि हमारे स्वतंत्रता आंदोलन के जननायकों का इस विषय पर मत था कि भारत अपने पुरातन जीवन-मूल्यों से युक्त रास्ते पर चले। परंतु यह विडंबना हैं कि देश ऊपर लिखे दोनों विचारों के व्यामोह में फंस कर घड़ी के पेंडुलम की तरह झूलता रहा। आजादी के बाद ही प्रसिध्द चिंतक, राजनीतिज्ञ एवं समाजसेवक पं. दीनदयाल उपाध्याय ने इन दोनों विचारों, पूंजीवाद एवं साम्यवाद के विकल्प के रूप में एकात्म मानववाद का दर्शन रखा था। उन्होंने सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के सिद्धांत पर जोर दिया। अब जब कि साम्यवाद ध्वस्त हो चुका है, पूंजीवाद को बिखरते-टूटते हम देख ही रहे हैं, भारत एवं विश्व के समक्ष इस दर्शन की प्रासंगिकता पर नए सिरे से विचार का समय आ गया है।पश्चिम का ज्ञान-विज्ञान पश्चिम के साम्राज्यवाद के माध्यम से ही एशिया व अफ्रीका के महाद्वीपों में पहुंचा। पश्चिम के संपर्क से इन समाजों की चिंतनधारा निर्णायक रूप से प्रभावित हुई, लेकिन एशियाई राष्ट्रवादी मानस पश्चिमी साम्राज्यवाद के साथ-साथ पश्चिमी ज्ञान की प्रभुता को भी स्वीकार करना अपने स्वाभिमान पर चोट समझता था। अतः उसने पश्चिम के ज्ञान को नकारा। दीनदयाल उपाध्याय भारतीय राष्ट्रवाद की इसी धार की उपज थे।स्वतंत्रता के बाद भारत के नीति निर्धारकों द्वारा अपनायी गई विकास की रणनीति आर्थिक समस्याओं के समाधान में सफल नहीं रही। विशेषकर 1991 में अपनाए गए आर्थिक सुधारों ने आर्थिक विषमता, गरीबी, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार सहित अनेक आर्थिक समस्याओं को जटिल बनाया है। इसका प्रमुख कारण है। कि सरकार ने भारत की विशिष्ट स्थिति को ध्यान में रखकर यथार्थवादी व व्यावहारिक नीतियों को नहीं अपनाया। ऐसे में पंडित दीनदयाल जी का आर्थिक चिंतन निश्चित रूप से वर्तमान गंभीर आर्थिक समस्याओं के समाधान में पूर्णतया प्रासंगिक है क्योंकि उनके चिंतन का केंद्र कतार का अंतिम व्यक्ति था। प्रस्तुत शोध पत्र में पंडित दीनदयाल जी के आर्थिक विचारों की वर्तमान समय मे प्रासंगिकता का अध्ययन करने का प्रयास किया गया है।

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How to cite this article:
डॉ. शेफालिका राय. पं. दीनदयाल उपाध्याय का एकात्म मानव दर्शन तथा आर्थिक विचार. Int. J. Arts Humanit. Social Stud. 2020;2(2):24-27. DOI: 10.33545/26648652.2020.v2.i2a.237
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